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Wednesday, May 21, 2025

सुशासन मे कौन दुशासन : नियम कायदों को ताक पर रखकर निगम ने निजी संस्था को दे दी निर्माण की अनुमति

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  • निगम को राजस्व का नुकसान पहुंचा कर निजी संस्था को पहुंचा रहे लाभ
  • समृद्धि बिजनेस पार्क को निर्माण की अनुमति देने रेन वाटर हार्वेस्टिंग, मटेरियल व पौध रोपण सुपर विजन, कर्मकार शुल्क किया दरकिनार
  • निगम के भवन विभाग में चल रहा गड़बड़ी का आलम

रायगढ़ । हमेशा अपने कारनामों से सुर्ख़ियों मे रहने वाला रायगढ़ नगर निगम का भवन निर्माण विभाग एक बार फिर विवादों के घेरे में है। वैसे ही साल के बारहों महीने निगम मे फंड का रोना रहता है। कर्मचारियों को तनख्वाह देने के भी लाले पड़े रहते हैं। हालिया एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें निगम की भवन निर्माण शाखा द्वारा एक निजी संस्था को लाभ पहुंचाने निगम को प्राप्त होने वाले राजस्व को नुकसान पहुंचाया गया है। समृद्धि बिजनेस पार्क निर्माण की अनुमति में रेन वाटर हार्वेस्टिंग, मटेरियल व पौध रोपण, सुपर विजन, कर्मकार जैसे लगने वाले कई शुल्क को दरकिनार कर निर्माण की अनुमति दे दी गई।

ज्ञात हो कि रायगढ़ के भगवानपुर मार्ग पर सीएमएचओ ऑफिस के पास एक निजी संस्था के द्वारा समृद्धि बिजनेस पार्क का निर्माण कराया जा रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां निर्माण की अनुमति देने में काफी आर्थिक गड़बड़ी की गई है। नियम कायदों को ताक पर रखकर उक्त संस्था को निर्माण की अनुमति दे दी गयी है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों में हुआ है। नगर निगम के द्वारा किसी भी प्रकार से निर्माण की अनुमति देने पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के नाम राशि ली जाती है, लेकिन यहां यह राशि नहीं ली गई है।

इसके अलावा निर्माण किए जाने वाली भूमि पर ११ रुपए प्रतिवर्ग मीटर पर मटेरियल शुल्क लिया जाता है। उक्त बिजनेस पार्क का निर्माण करीब सवा पांच एकड़ में किया जा रहा है। ऐसे में निगम को मटेरियल शुल्क से ही करीब २ से ३ लाख रुपए का राजस्व आय होता। इसे भी नजरअंदाज किया गया है। साथ ही वृक्षारोपण के लिए शुल्क निर्धारित है। निर्माण की अनुमति के लिए जब फाइल आती है तब वृक्षारोपण, मटेरियल शुल्क, रेन वाटर हार्वेस्टिंग का शुल्क ले लिया जाता है, लेकिन निगम के द्वारा इनकी अनदेखी करते हुए निर्माण की अनुमति संबंधित को दे दी। इससे निजी संस्था को तो लाभ हुआ, लेकिन निर्माण की अनुमति देने वाले निगम के अधिकारियों ने ही निगम को राजस्व का नुकसान पहुंचाया है।

डेवलपमेंट चार्ज, सुपर विजन और कर्मकार शुल्क भी नजर अंदाज

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस प्रकार की योजनाओं मे आम तौर पर विकास शुल्क याने डेवलपमेंट चार्ज लिया जाता है, यदि निर्माणकर्ता स्वयं इस कार्य को पूर्ण करता है तो उसे निर्माण की अनुमति के पूर्व एक शपथ पत्र देना होता है, किन्तु यहाँ आरटीआई मे प्राप्त दस्तावेजों मे शपथ पत्र नदारद है, साथ ही सुपर विजन और कर्मकार शुल्क के अलावा अन्य शुल्क लिये जाने सम्बंधित दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराये गए हैं। जिससे यह साबित होता है कि उक्त संस्था को निर्माण की अनुमति देते समय यह सब शुल्क नहीं लिये गए हैं। सूत्रों के अनुसार उक्त संस्था ने अभी तक परियोजना मे सड़क, नाली जैसे अन्य विकास कार्य नहीं करवाए हैं, तब सवाल यह उठता है कि बिना विकास कार्य किये अथवा विकास शुल्क लिये कैसे उक्त संस्था को लगातार निर्माण की अनुमति दी जा रही है।

आवेदन से पहले नोटशीट तैयार

आम तौर पर अपनी लेट लतीफी के नाम पर निगम वैसे ही बदनाम है। आम जनता को निगम से कोई काम करवाना होता है तो उसकी चप्पलें घिस जाती हैं पर उनका काम नहीं बनता। किन्तु इस मामले मे निगम की कार्यशैली की तारीफ तो बनती है। आरटीआई मे प्राप्त दस्तावेजों के अध्ययन से पता चलता है कि संस्था की ओर से निर्माण की अनुमति हेतु आवेदन निगम के आवक जावक शाखा द्वारा ३० अप्रैल २०२४ को रिसीव किया गया है, जबकि इसकी नोटशीट २९ अप्रैल को ही तैयार कर ली गयी थी।

इस मामले की शिकायत भी नगर निगम में की गई है। शिकायत में यह बताया गया है कि संबंधित फर्म के द्वारा विकसित की जा रही भूमि का स्टीमेट नहीं लिया गया है। इससे इसका सुपरविजन चार्ज भी निगम ने नजर अंदाज कर दिया। इसके अलावा एक प्रतिशत कर्मकार शुल्क लिया जाता है। इससे भी नहीं लिया गया है।

वर्सन

मामले की जानकारी मिली है। संबंधित फाइल को फिर से खुलवाया जा रहा है। फाइल देखने के बाद ही इस मामले में कुछ कह पाऊंगा।

ब्रजेश सिंह क्षत्रिय, आयुक्त, नगर निगम

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